कैलाश सिंह विकास वाराणसी
गड़वाघाट आश्रम में कोविड-नियमों के साथ हुआ दर्शन गुरुपुर्णिमा महोत्सव पर हजारों ने लिया सतगुरू सरनानन्द जी का आशीर्वाद
वाराणसी। संतमत अनुयायी आश्रम मठ गडवाघाट में पूरे दिन भक्तों की अनुशासित भीड़ लोगों को अपनी ओर आकृष्ट करती रही। मौका था गुरुपुर्णिमा का
आदिकाल से चली आ रही चिर परम्परा "गुरु दीक्षा को जीवित रखते हुए भटके लोगों को दीक्षित कर सही मार्ग दिखाने का प्रयास संतमत अनुयायी आश्रम मठ गडवाघाट के वर्तमान पीठाधीश्वर श्री श्री 108 स्वामी सरनानन्द जी महाराज ने अपने बहुमूल्य जीवन का मान लिया है। काशी नगरी के दक्षिणी क्रोड़ में माँ भागीरथी के तट पर अवस्थित सन्तों की तपस्थली गडवाघाट में उषाकाल से ही भक्तों, सन्तों व शिष्यों का हुजूम दिखने लगा और यह निरन्तर चलता रहा, जैसे लगा "चरैवेति चरवति" चरितार्थ हो गयी विस्तृत क्षेत्र में फैले गुरु आश्रम में आधी रात तक लोग आते गये और उसी में समाते गये। हालांकि इतनी भीड़ में काबिले तारीफ यह रहा कि भीड़ कोविड गाइड लाइन के अनुसार पूरी तरह अनुशासित रही।
गुरु महोत्सव का शुभारम्भ आश्रम के पूर्व पीठाधीश्वर श्री श्री 1008 स्वामी आत्मविवेकानन्द जी परमहंस से लेकर श्री श्री जी परमहंस तक क्रमश: समाधियों में विधिवत् तत्पश्चात् गुरु परम्परा के पीठाधीश्वर को सुसज्जित भक्त और शिष्यों ने किया। इसी क्रम में अबाध गति से यह कार्यक्रम अर्द्धरात्रि तक निरन्तर चलता रहा। 1008 स्वामी हरशंकरानन्द सभी पीठाधीश्वरों की पूजन अर्चन व आरती कर-कमलों से वर्तमान आसन ग्रहण कराकर, संत, पूजन-अर्चन व आरती सायंकाल में भी आश्रम के विशाल सतसंग भवन में श्री सद्गुरूदेव जी की विराट एवं भव्य नयनाभिराम महाआरती को देख श्रद्धालु अपने को धन्य मानने लगे। उक्त अवसर पर उमड़े भक्तों के समूह को सम्बोधित करते हुए श्री श्री 108 स्वामी सद्गुरू सरनानन्द जी महाराज परमहंस ने कहा कि
सेवा एवं समर्पण ही शिष्य के लिए वर्तमान पीठाधीश्वर के गुरुदक्षिणा है। - - सतगुरु सरनानन्द अनुसार
"मानव जीवन की श्रेष्ठता उसके कर्मों से सिद्ध होती है। अपना कर्म श्रेष्ठ रखें, प्रारब्ध भी श्रेष्ठ होगा।" दिन पर्यन्त चले इस महोत्सव में बाबा प्रकाशध्यानानन्द, धर्मदर्शनानन्द, सतज्ञानानन्द ऋतुसेवानन्द, दिव्यदर्शनानन्द गुरूसेवानन्द, देवसरन सेठ, किशुन यादव, रामजी सेठ, रामउजागिर सेठ, ओमप्रकाश यादव एवं मुम्बई, कलकत्ता, हरिद्वार आश्रम से आये अनेक महात्मागण एवं स्थानीय भक्तों का समुदाय घड़ी तत्परता से गुरु सेवा में लीन दिखाई दिया।
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